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त्यौहार के बाद लौटते परिंदे: गृह जनपद से दूर शिक्षकों की मन की बात” अवश्य पढ़ें पसंद आये तो शेयर भी भी करें और like भी करें

On: October 24, 2025 6:37 AM
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Basic Wale | Primary Ka Master

यह अनुरोध शिक्षक जीवन की भावनात्मक परिस्थितियों के अनुरूप एक संवेदनशील कविता के लिए है — विशेषकर उन शिक्षकों के लिए जो अपने गृह जनपद से दूर सेवा दे रहे हैं।
नीचे वह कविता प्रस्तुत है।

कविता: मोहलत के पल

त्यौहार ढल गया, दीप बुझ गए,

पर मन के आँगन में अब भी उजास है,

वो घर की गली, बचपन का पेड़,

यादों में अब भी सांस-सांस है।

परिंदे लौट चले कक्षाओं की ओर,

जहाँ कर्तव्य पुकारता हर dawn,

बोझ किताबों का नहीं, आकांक्षाओं का है,

हर बच्चे की मुस्कान में है जीवन का प्रण।

कभी चाय की प्याली में माँ की याद घुलती,

कभी वतन की माटी से मन महक उठता,

फिर भी बोर्ड पर लिखे हर शब्द के साथ,

एक शिक्षक का सपना आगे बढ़ता।

काश थोड़ी और मोहलत मिलती,

दो पल और घर के आँगन में ठहरने की,

पर यही है शिक्षक की तपस्या—

सब कुछ समर्पित, बस सेवा करने की।


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